वो एक पंछी जो हर रोज आता है
कभी सोचा है कि वो तुम्हारी बालकनी पर ही क्यों आता है
कभी तुम्हारा मूड अच्छा होता है तो तुम दाना डाल देते हो
तुम उसको हाथ में लेकर पँख सहला देते है
आज मन अच्छा है तो उसकी आवाज़ से आवाज़ मिला भी देते हो
किसी दिन तुम्हारा मूड ख़राब है किसी बात को लेकर शायद
वो पँख फड़फड़ाकर और चहचहाकर तुम्हारा ध्यान खींचने की कोशिश करता है
आज तुम नही देखते उसके तरफ
फिर भी वो अगले दिन तुम्हारे ही बालकनी पर आता है
दिन गुजरते है ऐसे ही पंछी रोज आता है
अभी तुम देखते हो जी भरकर, कभी जरा भी ध्यान नहीं देते
कभी कभी तो देख कर अनदेखा कर देते हो
फिर भी वो पंछी तुम्हारी बालकनी पर आता ही है
दिन बीतने है मौसम बदलता ही एक दिन
और तुमने बालकनी मे जाली लगा दिया
फिर भी आता है बालकनी की जाली पर लटकता है
थोड़ी तकलीफ होती है पंछी को लटकने में
फिर भी वो कई रोज आता है लगातार आता है
कुछ दिन तक पंछी कोशिश करता है लटकने की
फिर कही गुम हो जाता है, दुनिया की भीड़ में
फिर ध्यान देते हो कि वो पंछी की नहीं आता है
लेकिन तुम्हे अपनी जाली नहीं दिखाई देती
क्योकि तुम जाली के पार ही देखते हो
उस पंछी के पास हमेशा से मजूबत पंख थे
हमेशा से खुला आसमान भी था उसके पास
बहुत बालकनी थी इस शहर की भीड़ में
बहुत दाना डालने वाले भी लोग भी थे यहाँ
उसको दाने और ठिकाने की कोई कमी नहीं था यहाँ
वो तो तुम्हारी बालकनी में इसलिए आता है
क्योंकि पुरे शहर में उसे तुम पसंद थे
वो एक पंछी जो हर रोज आता था
कभी सोचा है कि वो तुम्हारी बालकनी पर ही क्यों आता था